Friday, November 16, 2012

दीयों से सजी दिवाली


साल के बाद साल, स्कूल को मैं वादा  करती,
पटाखे बिलकुल भी नहीं जलाऊँगी, 
पर पटाखों को देख कर मेरा मन डगमगाता, 
अपने आप को रोक न पाती ...

पर इस साल न जाने क्या हुआ, 
सबको दिवाली की दी बधाई,
बनाई रंगोली, जलाये दीये, 
पर एक भी पटाखा न मैं घर लाई ।

मैं अपने निर्णय पर अटल रही,
कोई मेरा मन न बदल पाया,
पिछले साल का फुलझड़ी का डब्बा था पड़ा,
फिर भी मेरा मन न ललचाया ।

वह एक फुलझड़ी जो मैंने नहीं जलाई,
जलाती  तो न जाने क्या हो जाता,
आ सकता था किसी को अस्थमा अटैक,
धुंए से ज़रूर किसी का मन घबराता ।

सोच लिया है मैंने,
बेहतर वातावरण में मुझे है रहना,
पेड़  मत काटो, पटाखे मत जलाओ,
पूरी दुनिया से मुझे है यह कहना ।

धूल - मिट्टी  नहीं चाहिए,
प्रदूषण न मैं सह सकती,
जब पृथ्वी स्वच्छ हो  जाएगी,
गर्व से कहूँगी - यह है हमारी शक्ति !

मेरे श्री राम स्कूल और हमारे पर्यावरण क्लब ने,
कुछ कर दिखाने की प्रेरणा मुझे दी,
अब और हिम्मत आ गई है मुझ में ,
अपने सपनों  को पूरा करने की !