पटाखे बिलकुल भी नहीं जलाऊँगी,
पर पटाखों को देख कर मेरा मन डगमगाता,
अपने आप को रोक न पाती ...
पर इस साल न जाने क्या हुआ,
सबको दिवाली की दी बधाई,
बनाई रंगोली, जलाये दीये,
पर एक भी पटाखा न मैं घर लाई ।
मैं अपने निर्णय पर अटल रही,
कोई मेरा मन न बदल पाया,
पिछले साल का फुलझड़ी का डब्बा था पड़ा,
फिर भी मेरा मन न ललचाया ।
वह एक फुलझड़ी जो मैंने नहीं जलाई,
जलाती तो न जाने क्या हो जाता,
आ सकता था किसी को अस्थमा अटैक,
धुंए से ज़रूर किसी का मन घबराता ।
सोच लिया है मैंने,
बेहतर वातावरण में मुझे है रहना,
पेड़ मत काटो, पटाखे मत जलाओ,
पूरी दुनिया से मुझे है यह कहना ।
धूल - मिट्टी नहीं चाहिए,
प्रदूषण न मैं सह सकती,
जब पृथ्वी स्वच्छ हो जाएगी,
गर्व से कहूँगी - यह है हमारी शक्ति !
मेरे श्री राम स्कूल और हमारे पर्यावरण क्लब ने,
कुछ कर दिखाने की प्रेरणा मुझे दी,
अब और हिम्मत आ गई है मुझ में ,
अपने सपनों को पूरा करने की !
Awesome Meher...amazing...
ReplyDeleteGod Bless you!
Cheers, Rabani